लकड़हारा और व्यापारी
लकड़हारा और व्यापारी |
एक गाँव में
एक गरीब लड़का
रहता था जिसका
नाम मोहन था
। मोहन बहुत
मेहनती था लेकिन
थोड़ा कम पढ़ा
लिखा होने की
वजह से उसे
नौकरी नहीं मिल
पा रही थी
। ऐसे ही
एक दिन भटकता
भटकता एक लकड़ी
के व्यापारी के
पास पहुँचा ।
उस व्यापारी ने
लड़के की दशा
देखकर उसे जंगल
से पेड़ कटाने
का काम दिया
।
मोहन अब एक
लकड़हारा बन गया
था| नयी नौकरी
से मोहन बहुत
उत्साहित था , वह
जंगल गया और
पहले ही दिन
18 पेड़ काट डाले।
व्यापारी ने भी
मोहन को शाबाशी
दी , शाबाशी सुनकर
मोहन और गदगद
हो गया और
अगले दिन और
ज्यादा मेहनत से काम
किया । लेकिन
ये क्या ? वह
केवल 15 पेड़ ही
काट पाया ।
व्यापारी ने कहा
– कोई बात नहीं
मेहनत करते रहो
।
तीसरे दिन उसने
और ज्यादा जोर
लगाया लेकिन केवल
10 पेड़ ही ला
सका । अब
मोहन बड़ा दुखी
हुआ लेकिन वह
खुद नहीं समझ
पा रहा था क्योकि वह रोज
पहले से ज्यादा
काम करता लेकिन
पेड़ कम काट
पाता । हारकर
उसने व्यापारी से
ही पूछा – मैं
सारे दिन मेहनत
से काम करता
हूँ लेकिन फिर
भी क्यों पेड़ों
की संख्या कम
होती जा रही
है । व्यापारी
ने पूछा – तुमने
अपनी कुल्हाड़ी को
धार कब लगायी
थी ।
मोहन
बोला – धार ? मेरे पास
तो धार लगाने
का समय ही
नहीं बचता मैं
तो सारे दिन
पेड़ कटाने में
व्यस्त रहता हूँ
। व्यापारी – बस
इसीलिए तुम्हारी पेड़ों की
संख्या दिन प्रतिदिन
घटती जा रही
है ।
मित्रों यही बात
हमारे जीवन पर
भी लागू होती
है , हम रोज
सुबह नौकरी पेशा
करने जाते हैं
, खूब काम करते
हैं पर हम
अपनी कुल्हाड़ी रूपी कौशल को सुधार नहीं करते
हैं । हम
जिंदगी जीने में
इतने ज्यादा व्यस्त
हो जाते हैं
कि अपने शरीर
को भी कुल्हाड़ी
की तरह धार
नहीं दे पाते
और फलस्वरूप हम
दुखी रहते हैं
।
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