राजा बकर कन्ना
मण्डेरी का राजा विकराल सिंह नाम से ही नहीं स्वाभाव से भी बहुत विकराल था। एक दिन वह शिकार करने लगा। हिरणो के झुण्ड को देखकर उसने घोडा दौड़ाया पर कुछ हाथ नहीं लगा। थक हारकर वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा, उसकी आँख लग गई। एक बकरा आकर उसका मुँह चाटने लगा। विकराल सिंह हड़बड़ा कर उठ गया और बकरे के जोर से लात मारी। बकरा मिमियाने लगा परन्तु राजा को दया नहीं आई। वह बकरा एक महात्मा का था जो पास के आश्रम में ही रहते थे। उन्होंने बकरे की आवाज सुनी और उसी दिशा में दौड़ के चले आये। उन्होंने विकराल से कहा - 'बेटा इसे मत सताओ , इसे छोड़ दो। '
राजा विकराल ने कहा - 'नहीं मै इसे दंड दूंगा। इसके कण और भी लम्बे कर दूंगा। '
महात्मा को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा- 'मुर्ख। तेरे कण इसके समान लम्बे हो जायेंगे।'
विकराल सिंह घबराया परन्तु महात्मा नहीं माने , राजा निराश हो कर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और अपने कान छूकर देखने लगा, महात्मा की बात सत्य हो चुकी थी राजा के कान लम्बे हो गए थे। यह देख राजा का मंत्री जो उसके साथ था तुरंत महात्मा के पास गया और उनसे माफ़ी मांगने लगा और बोला- "आप महात्मा है, राजा द्व्रारा गलती अवश्य हुई है परन्तु राजा को अपनी गलती का पछतावा भी है कृपा करके इसका समाधान बतावे।
महात्मा ने मंत्री को एकांत में ले जाकर कहा -" राजन 7 माह बाद सामान्य कान वाले हो जायेंगे परन्तु ये याद रहे तक तक किसी को भी इसके बारे में पता न चले और अगर ऐसा हुआ तो राजा सामान्य नहीं होंगे। "
मंत्री सहमत हो गया परन्तु राजा को भी यह बात बतला नहीं सकता था अतः वह राजा के पास आकर बोला - "धीरे धीरे आपके कान सामान्य होते चले जायेंगे। और एक बात आप अपने कान साफे से ढक ले ताकि किसी को भी इस बारे में पता नहीं चले। "
राजा और मंत्री अपने राज्य में पुनः आ गए और राजा ने भी मंत्री के अनुसार कार्य करना शुरू कर दिया, मंत्री जानता था की 7 माह लम्बा समय है और वह यह राज किसी को भी नहीं बता सकता था साथ ही राजा के कान लम्बे हो गए है यह बात भी राज की तरह रहे अतः उसने राजा के नाई गोपाल को बुलवाया और बोला- "आज से राजन की हजामत का कार्य तुम्हे करना है और हजामत बना कर बिना कोई सवाल पूछे चले जाना है अगर कोई भी सवाल पूछा तो तुम्हे मृत्युदंड दे दिया जायेगा। "
2 माह तक गोपाल यही कार्य करता रहा, एक दिन उसे कुछ कार्य से बहार जाना पड़ा तो उसने रतन नाई से यह कार्य करने के लिए बोला। रतन नाई सहमत हो गया परन्तु राजा के लम्बे कान देख कर वह यह बात पेट में नहीं रख सका और उसका पेट फूल गया। प्रतिदिन वह परेशान रहने लगा परन्तु बात किसी को बताता तो मृत्यु दंड मिलता, वह तनाव में फूलता चला गया। आख़िरकार वैद्य को उसने इलाज के लिए बुलाया परन्तु वैद्य की किसी भी दवा उसे नहीं लग रही थी और रतन परेशान रहने लगा।
वैद्य ने एक दिन रतन नाई से कहा आखिर परेशानी क्या है तो रतन नाई ने कहा- 'अगर मैंने यह बात बतलाई तो मृत्यु दंड मिलेगा '
वैद्य ने कहा - 'तुम अपने मन की बात किसी पेड़ से एकांत में कह दो ताकि तुम स्वस्थ हो सको '
रतन नाई ने जंगल में आकर एकांत में एक पेड़ के पास जाकर बोला-" हमारा राजा बकर कन्ना"
कुछ दिन बाद रतन नाई स्वस्थ ही गया और उस पेड़ को काट कर वाद्य यंत्र बनाया गया जिसे वहा के दरबारी गोपी ने राजा को भेंट किया, राजा ने कहा- "गोपी जी इसे बजाये , जैसे ही गोपी ने उसे बजाया उसमे से आवाज आई - "हमारा राजा बकर कन्ना"
सभी दरबारी गण राजा के कान की और देखने लगे और राजा ने क्रोधित होकर दरबारी गोपी को कारावास में डालने का आदेश दिया, दरबारी गोपी ने कहा- "महाराज, मैंने एक सूखे पेड़ की लकड़ी से इसे बनाया है जिसमे रतन नाई ने कुछ कहा था। "
रतन नाई और दरबारी गोपी को कारावास में डालने का आदेश दिया गया और साथ ही फांसी का भी।
यह बात मंत्री को पता चली तो उसे बहुत दुःख हुआ परन्तु वह सत्य किसी को भी नहीं बता सकता था क्युकी राजा के कान ठीक होने में केवल 7 दिन ही बचे थे परन्तु उसे रतन नाई और दरबारी गोपी को भी फांसी से बचाना था अतः वह कारावास में रतन नाई और दरबारी गोपी से मिलने गया और बोला- " जैसे मै आपको बोलू, आप वैसा ही करे वार्ना आपको मै मृत्यु दंड से नहीं बचा पाउँगा "
रतन नाई और दरबारी गोपी को मंत्री ने कहा की वह राजा से अंतिम इच्छा के रूप में कहे की उन्हें फांसी 14 दिन बाद दी जाये , दोनों ने राजा विकराल सिंह से अंतिम इच्छा के रूप में 14 दिन बाद फांसी दी जाये यह इच्छा प्रकट की। राजा सहमत हो गया।
7 दिन बाद राजा के कान ठीक हो गए और उसके बाद मंत्री ने राजा को सारी बात बतलाई, राजा मंत्री से खुश होकर बोला- "जो मांगना चाहो मांग लो, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी की जाएगी। "
मंत्री ने तुरंत कहा -"महाराज , रतन नाई और दरबारी गोपी की किसी भी तरह की कोई गलती नहीं है कृपा कर उन्हें माफ़ कर दिया जाये और अपने घर जाने दिया जाये। "
राजा मंत्री की चतुराई से बहुत खुश हुए और रतन नाई और दरबारी गोपी को कैद से आजाद कर दिया।
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